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पश्चिम रेलवे राजभाषा अनुभाग
प्रधान कार्यालय
आपका स्वागत करता है

| मैं हिंदी के जरिए प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता किंतु उनके साथ हिंदी को भी मिला देना चाहता हूं । भारत में स्वतंत्रता के बाद संसदीय लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहां अनेक जातियों धर्मों और भाषाओं के बावजूद सबको बराबरी का हक मिला है। जहां स्त्री पुरुषों के बीच कोई असमानता नहीं है बल्कि भारत में महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुंची हैं और हर क्षेत्र में वे अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने में सफल रही हैं । |
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है ।
''मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के बराबर है, जो मातृभाषा का अपमान करता है, वह स्वदेश भक्त कहलाने के लायक नहीं है ।'' ---महात्मा गांधी"जब तक इस देश का राज-काज अपनी भाषा में नहीं चलेगा, तब तक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज्य हैं ।" ----मोरारजी देसाई "हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है ।" -----दयानंद सरस्वती ''मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम वतन है हिन्दोस्ता हमारा''-----डाँ. इकबाल
भारत वर्ष में अनेक भाषाएँ हैं और अनेक धर्म हैं, तथापि सबकी तह में संस्कृति का एक ही स्रोत बहता है, जिससे जो चाहता है कुछ खोदकर अपनी प्यास बुझाता है। डॉ.राजेन्द्रप्रसाद देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा हिंदी ही हो सकती है। लालबहादुरशास्त्री जिस राष्ट्र के पास अपनी भाषा नहीं वह राष्ट्र गूँगा हैं महात्मागांधी
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आदेश लोकसभा के 20 सदस्यों और राज्य सभा के 10 सदस्यों की एक समिति प्रथम-राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर विचार करने लिए और उनके विषय में अपनी राय राष्ट्रपति के समक्ष पेशकरने के लिए संविधान के अनुच्छेद 344 के खंड (4) के उपबंधों के अनुसार नियुक्त की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष 8 फरवरी, 1959 को पेश कर दी। नीचे रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें दी जा रही हैं जिनसे समिति के सामान्य दृष्टिकोण का परिचय मिल सकता है :- (क) | राजभाषा के बारे में संविधान में बड़ी समन्वित योजना दी हुई है। इसमें योजना के दायरे से बाहर जाए बिना स्थिति के अनुसार परिवर्तन करने की गुंजाइश है। | (ख) | विभिन्न प्रादेशिक भाषाएं राज्यों में शिक्षा और सरकारी काम-काज के माध्यम के रूप में तेजी से अंग्रेजी का स्थान ले रही हैं। यह स्वाभाविक ही है कि प्रादेशिक भाषाएं अपना उचित स्थान प्राप्त करें। अतः व्यवहारिक दृष्टि से यह बात आवश्यक हो गई है कि संघ के प्रयोजनों के लिए कोई एक भारतीय भाषा काम में लाई जाए। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह परिवर्तन किसी नियत तारीख को ही हो। यह परिवर्तन धीरे-धीरे इस प्रकार किया जाना चाहिए कि कोई गड़बड़ी न हो और कम से कम असुविधा हो। | (ग) | 1965 तक अंग्रेजी मुख्य राजभाषा और हिन्दी सहायक राजभाषा रहनी चाहिए। 1965 के उपरान्त जब हिन्दी संघ की मुख्य राजभाषा हो जाएगी अंग्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में ही चलती रहनी चाहिए। | (घ) | संघ के प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर कोई रोक इस समय नहीं लगाई जानी चाहिए और अनुच्छेद 343 के खंड (3) के अनुसार इस बात की व्यवस्था की जानी चाहिए कि 1965 के उपरान्त भी अंग्रेजी का प्रयोग इन प्रयोजनों के लिए, जिन्हें संसद् विधि द्वारा उल्लिखित करे तब तक होता रहे जब तक वैसा करना आवश्यक रहे। | (ड.) | अनुच्छेद 351 का यह उपबन्ध कि हिन्दी का विकास ऐसे किया जाए कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके, अत्यन्त महत्वपूर्ण है और इस बात के लिए पूरा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि सरल और सुबोध शब्द काम में लाए जाएं। रिपोर्ट की प्रतियां संसद के दोनों सदनों के पटल पर 1959 के अप्रैल मास में रख दी गई थीं और रिपोर्ट पर विचार-विमर्श लोक सभा में 2 सितम्बर से 4 सितम्बर, 1959तक और राज्य सभा में 8 और 9 सितम्बर, 1959 को हुआ था। लोक सभा में इस पर विचार-विमर्श के समय प्रधानमंत्री ने 4 सितम्बर, 1959 को एक भाषण दिया था। राजभाषा के प्रश्न पर सरकार का जो दृष्टिकोण है उसे उन्होंने अपने इस भाषण में मोटे तौर पर व्यक्त कर दिया था। |
2. अनुच्छेद344के खंड(6)द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने समिति की रिपोर्ट पर विचार किया है और राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर समिति द्वारा अभिव्यक्त राय को ध्यान में रखकर, इसके बाद निम्नलिखित निदेश जारी किए हैं। 3. शब्दावली- आयोग की जिन मुख्य सिफारिशों को समिति ने मान लिया वे ये हैं- (क) | शब्दावली तैयार करने में मुख्य लक्ष्य उसकी स्पष्टता, यथार्थता और सरलता होनी चाहिए; | (ख) | अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली अपनाई जाए, या जहां भी आवश्यक हो, अनुकूलन कर लिया जाए; | (ग) | सब भारतीय भाषाओं के लिए शब्दावली का विकास करते समय लक्ष्य यह होना चाहिए कि उसमें जहां तक हो सके अधिकतम एकरूपता हो; और | (घ) | हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली के विकास के लिए जो प्रयत्न केन्द्र और राज्यों में हो रहे हैं उनमें समन्वय स्थापित करने के लिए समुचित प्रबन्ध किए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त समिति का यह मत है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सब भारतीय भाषाओं में जहां तक हो सके एकरूपता होनी चाहिए और शब्दावली लगभग अंग्रेजी या अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली जैसी होनी चाहिए। इस दृष्टि से समिति ने यह सुझाव दिया है कि वे इस क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं द्वारा किए गए काम में समन्वय स्थापित करने और उसकी देखरेख के लिए और सब भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने की दृष्टि से एक प्रामाणिक शब्दकोश निकालने के लिए ऐसा स्थाई आयोग कायम किया जाए जिसके सदस्य मुख्यतः वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् हों। |
शिक्षा मंत्रालय निम्नलिखित विषय में कार्रवाई करें-- (क) | अब तक किए गए काम पर पुनर्विचार और समिति द्वारा स्वीकृत सामान्य सिद्धान्तों के अनुकूल शब्दावली का विकास / विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वे शब्द, जिनका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में होता है, कम से कम परिवर्तन के साथ अपना लिए जाएं, अर्थात मूल शब्द वे होने चाहिए जो कि आजकल अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली में काम आते हैं। उनसे ब्युत्पन्न शब्दों का जहां भी आवश्यक हो भारतीयकरण किया जा सकता हैः | (ख) | शब्दावली तैयार करने के काम में समन्वय स्थापित करने के लिए प्रबन्ध करने के विषय में सुझाव देना, और | (ग) | विज्ञान और तकनीकी शब्दावली के विकास के लिए समिति के सुझाव के अनुसार स्थाई आयोग का निर्माण। |
4. प्रशासनिक संहिताओं और अन्य कार्य-विधि साहित्य का अनुवाद-- इस आवश्यकता को दृष्टि में रखकर कि संहिताओं और अन्य कार्यविधि साहित्य के अनुवाद में प्रयुक्त भाषा में किसी हद तक एकरूपता होनी चाहिए, समिति ने आयोग की यह सिफारिश मान ली है कि सारा काम एक अभिकरण को सौंप दिया जाए। | शिक्षा मंत्रालय सांविधिक नियमों, विनियम और आदेशों के अलावा बाकी सब संहिताओं और अन्य कार्यविधि साहित्य का अनुवाद करे। सांविधिक नियमों, विनियमों और आदेशों का अनुवाद संविधियों के अनुवाद के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है, इसलिए यह काम विधि मंत्रालय करे। इस बात का पूरा प्रयत्न होना चाहिए कि सब भारतीय भाषाओं में इन अनुवादों को शब्दावली में जहां तक हो सके एकरूपता रखी जाए। |
5. प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग को हिन्दी का प्रशिक्षण-- (क) | समिति द्वारा अभिव्यक्त मत के अनुसार 45 वर्ष से कम आयु वाले सब केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए सेवा कालीन हिन्दी प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। तृतीय श्रेणी के ग्रेड से नीचे के कर्मचारियों और औद्योगिक संस्थाएं और कार्य प्रभारित कर्मचारियों के संबंध में यह बात लागू न होगी। इस योजना के अन्तर्गत नियत तारीख तक विहित योग्यता प्राप्त कर सकने के लिए कर्मचारी को कोई दंड नहीं किया जाना चाहिए। हिन्दी भाषा की पढ़ाई के लिए सुविधाएं प्रशिक्षार्थियों को मुफ्त मिलती रहनी चाहिए। | (ख) | गृह मंत्रालय उन टाइपकारों और आशुलिपिकों का हिन्दी टाइपराइटिंग और आशुलिपि प्रशिक्षण देने के लिए आवश्यक प्रबन्ध करे जो केन्द्रीय सरकार की नौकरी में हैं। | (ग) | शिक्षा मंत्रालय हिन्दी टाइपराइटरों के मानक की-बोर्ड (कुंजीपटल) के विकास के लिए शीघ्र कदम उठाए। |
6. हिन्दी प्रचार-- (क) | आयोग की इस सिफारिश से कि यह काम करने की जिम्मेदारी अब सरकार उठाए, समिति सहमत हो गई है। जिन क्षेत्रों में प्रभावी रूप से काम करने वाली गैर सरकारी संस्थाएं पहले से ही विद्यमान हैं उनमें उन संस्थाओं को वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता दी जाए और जहां ऐसी संस्थाएं नहीं हैं वहां सरकार आवश्यक संगठन कायम करे। शिक्षा मंत्रालय इस बात की समीक्षा करे कि हिन्दी प्रचार के लिए जो वर्तमान व्यवस्था है वह कैसी चल रही है। साथ ही वह समिति द्वारा सुझाई गई दिशाओं में आगे कार्रवाई करे। | (ख) | शिक्षा मंत्रालय और वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय परस्पर मिलकर भारतीय भाषा, विज्ञान भाषा-शास्त्र और साहित्य सम्बन्धी अध्ययन और अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के लिए समिति द्वारा सुझाए गए तरीके से आवश्यक कार्रवाई करें और विभिन्न भारतीय भाषाओं को परस्पर निकट लाने के लिए अनुच्छेद 351 में दिए गए निदेश के अनुसार हिन्दी का विकास करने के लिए आवश्यक योजना तैयार करें। |
7. केन्द्रीय सरकारी विभाग के स्थानीय कार्यालयों के लिए भर्ती- (क) | समिति की राय है कि केन्द्रीय सरकारी विभागों के स्थानीय कार्यालय अपने आन्तरिक कामकाज के लिए हिन्दी का प्रयोग करें और जनता के साथ पत्र-व्यवहार में उन प्रदेशों की प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करें। अपने स्थानीय कार्यालयों में अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी का उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने के वास्ते योजना तैयार करने में केन्द्रीय सरकारी विभाग इस आवश्यकता को ध्यान में रखें कि यथासंभव अधिक से अधिक मात्रा में प्रादेशिक भाषाओं में फार्म और विभागीय साहित्य उपलब्ध करा कर वहां की जनता को पूरी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। | (ख) | समिति की राय है कि केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक अभिकरणों और विभागों में कर्मचारियों की वर्तमान व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाए, कर्मचारियों का प्रादेशिक आधार पर विकेन्द्रीकरण कर दिया जाए, इसके लिए भर्ती के तरीकों और अर्हताओं में उपयुक्त संशोधन करना होगा। स्थानीय कार्यालयों में जिन कोटियों के पदों पर कार्य करने वालों की बदली मामूली तौर पर प्रदेश के बाहर नहीं होती उन कोटियों के सम्बन्ध में यह सुझाव, कोई अधिवास सम्बन्धी प्रतिबन्ध लगाए बिना, सिद्धान्ततः मान लिया जाना चाहिए। | (ग) | समिति आयोग की इस सिफारिश से सहमत है कि केन्द्रीय सरकार के लिए यह विहित कर देना न्यायसम्मत होगा कि उसकी नौकरियों में लगने के लिए अर्हता यह भी होगी कि उम्मीदवार को हिन्दी भाषा का सम्यक ज्ञान हो। पर ऐसा तभी किया जाना चाहिए जबकि इसके लिए काफी पहले से ही सूचना दे दी गई हो और भाषा-योग्यता का विहित स्तर मामूली हो और इस बारे में जो भी कमी हो उसे सेवाकालीन प्रशिक्षण द्वारा पूरा किया जा सकता है। यह सिफारिश अभी हिन्दी भाषी क्षेत्रों के केन्द्रीय सरकारी विभागों में ही कार्यान्वित की जाए, हिन्दीतर भाषा-भाषी क्षेत्रों के स्थानीय कार्यालयों में नहीं। |
(क), (ख)और (ग) में दिए गए निदेश भारतीय लेखा-परीक्षा और लेखा विभाग के अधीन कार्यालयों के सम्बन्ध में लागू न होंगे। 8. प्रशिक्षण संस्थान-- (क) समिति ने यह सुझाव दिया है कि नेशनल डिफेंस एकेडमी जैसे प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही बना रहे किन्तु शिक्षा सम्बन्धी कुछ या सभी प्रयोजनों के लिए माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। रक्षा मंत्रालय अनुदेश पुस्तिकाओं इत्यादि के हिन्दी प्रकाशन आदि के रूप में समुचित प्रारम्भिक कार्रवाई करें, ताकि जहां भी व्यवहार्य हो शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग सम्भव हो जाए। (ख) समिति ने सुझाव दिया कि प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए, अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही परीक्षा के माध्यम हों, किन्तु परिक्षार्थियों का यह विकल्प रहे कि वे सब या कुछ परीक्षा पत्रों के लिए उनमें से किसी एक भाषा को चुन लें और एक विशेष समिति यह जांच करने के लिए नियुक्त की जाए कि नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग परीक्षा के माध्यम के रूप में कहां तक शुरू किया जा सकता है। रक्षा मंत्रालय को चाहिए कि वह प्रवेश परीक्षाओं में वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे और कोई नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना परीक्षा के माध्यम के रूप में प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग आरम्भ करने के प्रश्न पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करे। 9. अखिल भारतीय सेवाओं और उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं में भर्ती (क) परीक्षा का माध्यम- समिति कि राय है कि क | परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना रहे और कुछ समय पश्चात् हिन्दी वैकल्पिक माध्यम के रूप में अपना ली जाए। उसके बाद जब तक आवश्यक हो अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही परीक्षार्थी के विकल्पानुसार परीक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने की छूट हो; और | ख | किसी प्रकार की नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना परीक्षा के माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की जाए। | | कुछ समय के पश्चात वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श कर गृह मंत्रालय आवश्यक कार्रवाई करे। वैकल्पिक माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करने से गम्भीर कठिनाइयां पैदा होने की संभावना है, इसलिए वैकल्पिक माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति नियुक्त करना आवश्यक नहीं है। |
(ख) भाषा विषयक प्रश्न-पत्र- समिति की राय है कि सम्यक सूचना के बाद समान स्तर के दो अनिवार्य प्रश्न-पत्र होने चाहिए जिनमें से एक हिन्दी और दूसरा हिन्दी से भिन्न किसी भारतीय भाषा का होना चाहिए और परीक्षार्थी को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह इनमें से किसी एक को चुन ले। अभी केवल एक ऐच्छिक हिन्दी परीक्षा पत्र शुरू किया जाए। प्रतियोगिता के फल पर चुने गए जो परीक्षार्थी इस परीक्षा पत्र में उत्तीर्ण हो गए हों, उन्हें भर्ती के बाद जो विभागीय हिन्दी परीक्षा देनी होती है उसमें बैठने और उसमें उत्तीर्ण होने की शर्त से छूट दी जाए। 10. अंक- जैसा कि समिति का सुझाव है केन्द्रीय मंत्रालयों का हिन्दी प्रकाशनों में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों के अतिरिक्त देवनागरी अंकों के प्रयोग के सम्बन्ध में एक आधारभूत नीति अपनाई जाए,जिसका निर्धारण इस आधार पर किया जाए कि वे प्रकाशन किस प्रकार की जनता के लिए हैं और उसकी विषयवस्तु क्या है। वैज्ञानिक, औद्योगिक और सांख्यिकीय प्रकाशनों में,जिसमें केन्द्रीय सरकार का बजट सम्बन्धी साहित्य भी शामिल है, बराबर अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग किया जाए। 11. अधिनियमों,विधेयकों इत्यादि की भाषा-- (क) समिति ने राय दी है कि संसदीय विधियां अंग्रेजी में बनती रहें किन्तु उनका प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराया जाए। संसदीय विधियां अंग्रेजी में तो रहें पर उसके प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था करने के वास्ते विधि मंत्रालय आवश्यक विधेयक उचित समय पर पेश करे। संसदीय विधियों का प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद कराने का प्रबन्ध भी विधि मंत्रालय करे। (ख) समिति ने राय जाहिर की है जहां कहीं राज्य विधान मण्डल में पेश किए गए विधेयकों या पास किए गए अधिनियमों का मूल पाठ हिन्दी में से भिन्न किसी भाषा में है, वहां अनुच्छेद 348 के खण्ड (3) के अनुसार अंग्रेजी अनुवाद के अलावा उसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित किया जाए। राज्य की राजभाषा में पाठ के साथ-साथ राज्य विधेयकों, अधिनियमों और अन्य सांविधिक लिखतों के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन के लिए आवश्यक विधेयक उचित समय पर पेश किया जाए। 12. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की भाषा- राजभाषा आयोग ने सिफारिश की थी कि जहां तक उच्चतम न्यायालय की भाषा का सवाल है उसकी भाषा इस परिवर्तन का समय आने पर अन्ततः हिन्दी होनी चाहिए। समिति ने यह सिफारिश मान ली है। आयोग ने उच्च न्यायालयों की भाषा के विषय में प्रादेशिक भाषाओं और हिन्दी के पक्ष-विपक्ष में विचार किया और सिफारिश की कि जब भी इस परिवर्तन का समय आए, उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आज्ञप्त्िायों (डिक्रियों) और आदेशों की भाषा जब प्रदेशों में हिन्दी होनी चाहिए किन्तु समिति की राय है कि राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से आवश्यक विधेयक पेश करके यह व्यवस्था करने की गुंजाइश रहे कि उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आज्ञप्तियों (डिक्रियों) और आदेशों के लिए उच्च न्यायालय में हिन्दी और राज्यों की राजभाषाएं विकल्पतः प्रयोग में लाई जा सकेंगी। समिति की राय है कि उच्चतम न्यायालय अन्ततः अपना सब काम हिन्दी में करे, यह सिद्धान्त रूप में स्वीकार्य है और इसके संबंध में समुचित कार्यवाही उसी समय अपेक्षित होगी जब कि इस परिवर्तन के लिए समय आ जाएगा। जैसा कि आयोग की सिफारिश की तरमीम करते हुए समिति ने सुझाव दिया है, उच्च न्यायालयों की भाषा के विषय में यह व्यवस्था करने के लिए आवश्यक विधेयक विधि मंत्रालय उचित समय पर राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से पेश करे कि निर्णयों, डिक्रियों और आदेशों के प्रयोजनों के लिए हिन्दी और राज्यों की राजभाषाओं का प्रयोग विकल्पतः किया जा सकेगा। 13. विधि क्षेत्र में हिन्दी में काम करने के लिए आवश्यक आरम्भिक कदम- मानक विधि शब्दकोश तैयार करने, केन्द्र तथा राज्य के विधान निर्माण से संबंधित सांविधिक ग्रन्थ का अधिनियम करने, विधि शब्दावली तैयार करने की योजना बनाने और जिस संक्रमण काल में सांविधिक ग्रंथ और साथ ही निर्णयविधि अंशतः हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे, उस अवधि में प्रारम्भिक कदम उठाने के बारे में आयोग ने जो सिफारिश की थी उन्हें समिति ने मान लिया है। साथ ही समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि संविधियों के अनुवाद और विधि शब्दावली तथा कोशों से संबंधित सम्पूर्ण कार्यक्रम की समुचित योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए भारत की विभिन्न राष्ट्रभाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञों का एक स्थाई आयोग या इस प्रकार कोई उच्च स्तरीय निकाय बनाया जाए। समिति ने यह राय भी जाहिर की है कि राज्य सरकारों को परामर्श दिया जाए कि वे भी केन्द्रीय सरकार से राय लेकर इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें। समिति के सुझाव को दृष्टि में रखकर विधि मंत्रालय यथासंभव सब भारतीय भाषाओं में प्रयोग के लिए सर्वमान्य विधि शब्दावली की तैयारी और संविधियों के हिन्दी में अनुवाद संबंधी पूरे काम के लिए समुचित योजना बनाने और पूरा करने के लिए विधि विशेषज्ञों के एक स्थाई आयोग का निर्माण करे। 14. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए योजना का कार्यक्रम-- समिति ने यह सुझाव दिया है कि संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की योजना संघ सरकार बनाए और कार्यान्वित करे। संघ के राजकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर इस समय कोई रोक न लगाई जाए। तद्नुसार गृह मंत्रालय एक योजना कार्यक्रम तैयार करे और उसे अमल में लाने के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करे। इस योजना का उद्देश्य होगा संघीय प्रशासन में बिना कठिनाई के हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए प्रारम्भिक कदम उठाना और संविधान के अनुच्छेद 343 खंड (2) में किए गए उपबन्ध के अनुसार संघ के विभिन्न कार्यों में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना, अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी का प्रयोग कहां तक किया जा सकता है यह बात इन प्रारम्भिक कार्रवाईयों की सफलता पर बहुत कुछ निर्भर करेगी। इस बीच प्राप्त अनुभव के आधार पर अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी के वास्तविक प्रयोग की योजना पर समय-समय पर पुनर्विचार और उसमें हेर-फेर करना होगा।
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राजभाषा अधिनियम, 1963 (यथासंशोधित,1967) (1963का अधिनियम संख्यांक19) उन भाषाओं का,जो संघ के राजकीय प्रयोजनों,संसद में कार्य के संव्यवहार,केन्द्रीय और राज्य अधिनियमों और उच्च न्यायालयों में कतिपय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जा सकेंगी,उपबन्ध करने के लिए अधिनियम ।भारत गणराज्य के चौदहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित होः- 1.संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ- (1) यह अधिनियम राजभाषा अधिनियम, 1963कहा जा सकेगा। (2) धारा3,जनवरी, 1965के26वें दिन को प्रवृत्त होगी और इस अधिनियम के शेष उपबन्ध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार,शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिए विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी। 2. परिभाषाएं--इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, (क)'नियत दिन'से,धारा3के सम्बन्ध में,जनवरी, 1965का26वां दिन अभिप्रेत है और इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के सम्बन्ध में वह दिन अभिप्रेत है जिस दिन को वह उपबन्ध प्रवृत्त होता है; (ख)'हिन्दी'से वह हिन्दी अभिप्रेत है जिसकी लिपि देवनागरी है। 3. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए और संसद में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा का रहना-- (1) संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि की समाप्तिहो जाने पर भी,हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा,नियत दिन से ही, (क)संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए जिनके लिए वह उस दिन से ठीक पहले प्रयोग में लाई जाती थी;तथा (ख) संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए प्रयोग में लाई जाती रह सकेगी: परंतु संघ और किसी ऐसे राज्य के बीच,जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है,पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा प्रयोग में लाई जाएगीः परन्तु यह और कि जहां किसी ऐसे राज्य के,जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है और किसी अन्य राज्य के,जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है,बीच पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाया जाता है,वहां हिन्दी में ऐसे पत्रादि के साथ-साथ उसका अनुवाद अंग्रेजी भाषा में भेजा जाएगा: परन्तु यह और भी कि इस उपधारा की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह किसी ऐसे राज्य को,जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है,संघ के साथ या किसी ऐसे राज्य के साथ,जिसने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में अपनाया है,या किसी अन्य राज्य के साथ,उसकी सहमति से,पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी को प्रयोग में लाने से निवारित करती है,और ऐसे किसी मामले में उस राज्य के साथ पत्रादि के प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग बाध्यकर न होगा । (2) उपधारा(1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,जहां पत्रादि के प्रयोजनों के लिए हिन्दी या अंग्रेजी भाषा-- (i)केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और दूसरे मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के बीच; (ii) केन्द्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग या कार्यालय के और केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के बीच; (iii) केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी या उसके किसी कार्यालय के और किसी अन्य ऐसे निगम या कम्पनी या कार्यालय के बीच; प्रयोग में लाई जाती है वहां उस तारीख तक,जब तक पूर्वोक्त संबंधित मंत्रालय,विभाग,कार्यालय या विभाग या कम्पनी का कर्मचारीवृद हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता,ऐसे पत्रादि का अनुवाद,यथास्थिति,अंग्रेजी भाषा या हिन्दी में भी दिया जाएगा। (3) उपधारा(1)में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी हिन्दी और अंग्रेजी भाषा दोनों ही-- (i)संकल्पों,साधारण आदेशों,नियमों,अधिसूचनाओं,प्रशासनिक या अन्य प्रतिवेदनों या प्रेस विज्ञप्तियोंके लिए,जो केन्द्रीय सरकार द्वारा या उसके किसी मंत्रालय,विभाग या कार्यालय द्वारा या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निकाले जाते हैं या किए जाते हैं; (ii) संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखे गए प्रशासनिक तथा अन्य प्रतिवेदनों और राजकीय कागज-पत्रों के लिए; (iii) केन्द्रीय सरकार या उसके किसी मंत्रालय,विभाग या कार्यालय द्वारा या उसकी ओर से या केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व में के या नियंत्रण में के किसी निगम या कम्पनी द्वारा या ऐसे निगम या कम्पनी के किसी कार्यालय द्वारा निष्पादित संविदाओं और करारों के लिए तथा निकाली गई अनुज्ञप्त्िायों,अनुज्ञापत्रों,सूचनाओं और निविदा-प्ररूपों के लिए,प्रयोग में लाई जाएगी। (4) उपधारा(1)या उपधारा(2) या उपधारा(3)के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि केन्द्रीय सरकार धारा8के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा उस भाषा या उन भाषाओं का उपबन्ध कर सकेगी जिसे या जिन्हें संघ के राजकीय प्रयोजन के लिए,जिसके अन्तर्गत किसी मंत्रालय,विभाग,अनुभाग या कार्यालय का कार्यकरण है,प्रयोग में लाया जाना है और ऐसे नियम बनाने में राजकीय कार्य के शीघ्रता और दक्षता के साथ निपटारे का तथा जन साधारण के हितों का सम्यक ध्यान रखा जाएगा और इस प्रकार बनाए गए नियम विशिष्टतया यह सुनिश्चितकरेंगे कि जो व्यक्ति संघ के कार्यकलाप के सम्बन्ध में सेवा कर रहे हैं और जो या तो हिन्दी में या अंग्रेजी भाषा में प्रवीण हैं वे प्रभावी रूप से अपना काम कर सकें और यह भी कि केवल इस आधार पर कि वे दोनों ही भाषाओं में प्रवीण नहीं है उनका कोई अहित नहीं होता है। (5) उपधारा(1)के खंड(क) के उपबन्ध और उपधारा(2),उपधारा(3) और उपधारा(4),के उपबन्ध तब तक प्रवृत्त बने रहेंगे जब तक उनमें वर्णित प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त कर देने के लिए ऐसे सभी राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा,जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में नहीं अपनाया है,संकल्प पारित नहीं कर दिए जाते और जब तक पूर्वोक्त संकल्पों पर विचार कर लेने के पश्चात् ऐसी समाप्तिके लिए संसद के हर एक सदन द्वारा संकल्प पारित नहीं कर दिया जाता। 4 .राजभाषा के सम्बन्ध में समिति- (1) जिस तारीख को धारा3प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्तिके पश्चात,राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति,इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर,गठित की जाएगी। (2) इस समिति में तीस सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोक सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य सभा के सदस्य होंगे,जो क्रमशः लोक सभा के सदस्यों तथा राज्य सभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे। (3) इस समिति का कर्तव्य होगा कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करें और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद् के हर एक सदन के समक्ष रखवाएगा और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएगा । (4) राष्ट्रपति उपधारा(3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उन पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा: परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा3के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे । 5. केन्द्रीय अधिनियमों आदि का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद- (1) नियत दिन को और उसके पश्चात् शासकीय राजपत्र में राष्ट्रपति के प्राधिकार से प्रकाशित-- (क)किसी केन्द्रीय अधिनियम का या राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किसी अध्यादेश का,अथवा (ख) संविधान के अधीन या किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन निकाले गए किसी आदेश,नियम,विनियम या उपविधि का हिन्दी में अनुवाद उसका हिन्दी में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा । (2) नियत दिन से ही उन सब विधेयकों के,जो संसदके किसी भी सदन में पुरःस्थापित किए जाने हों और उन सब संशोधनों के,जो उनके समबन्ध में संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जाने हों,अंग्रेजी भाषा के प्राधिकृत पाठ के साथ-साथ उनका हिन्दी में अनुवाद भी होगा जो ऐसी रीति से प्राधिकृत किया जाएगा,जो इस अधिनियम के अधीनबनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाए। 6. कतिपय दशाओं में राज्य अधिनियमों का प्राधिकृत हिन्दी अनुवाद- जहां किसी राज्य के विधानमण्डल ने उस राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में प्रयोग के लिए हिन्दी से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां,संविधान के अनुच्छेद348के खण्ड(3) द्वारा अपेक्षित अंग्रेजी भाषा में उसके अनुवाद के अतिरिक्त,उसका हिन्दी में अनुवाद उस राज्य के शासकीय राजपत्र में,उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से,नियत दिन को या उसके पश्चात् प्रकाशित किया जा सकेगा और ऐसी दशा में ऐसे किसी अधिनियम या अध्यादेश का हिन्दी में अनुवाद हिन्दी भाषा में उसका प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा। 7 .उच्च न्यायालयों के निर्णयों आदि में हिन्दी या अन्य राजभाषा का वैकल्पिक प्रयोग- नियत दिन से ही या तत्पश्चात् किसी भी दिन से किसी राज्य का राज्यपाल,राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से,अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग,उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय,डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकेगा और जहां कोई निर्णय,डिक्री या आदेश(अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी भाषा में पारित किया या दिया जाता है वहां उसके साथ-साथ उच्च न्यायालय के प्राधिकार से निकाला गया अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद भी होगा। 8. नियम बनाने की शक्ति- (1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम,शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा,बना सकेगी । (2) इस धारा के अधीन बनाया गया हर नियम,बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र,संसद के हर एक सदन के समक्ष,जब वह सत्र में हो,कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। वह अवधि एक सत्र में,अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रममिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रुप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात यह निस्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निस्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा । 9 .कतिपय उपबन्धों का जम्मू-कश्मीर को लागू न होना- धारा6और धारा7के उपबन्ध जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू न होंगे। *************************************************************************************************************************************** *********************************************************** | राष्ट्रपति के आदेश, 1960

(गृह मंत्रालय की दि. 27 अप्रैल, 1960 की अधिसूचना संख्या 2/8/60-रा.भा., की प्रतिलिपि) अधिसूचना राष्ट्रपति का निम्नलिखित आदेश आम जानकारी के लिए प्रकाशित किया जाता है :- नई दिल्ली, दिनाक 27 अप्रैल, 1960 आदेश लोकसभा के 20 सदस्यों और राज्य सभा के 10 सदस्यों की एक समिति प्रथम-राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर विचार करने लिए और उनके विषय में अपनी राय राष्ट्रपति के समक्ष पेशकरने के लिए संविधान के अनुच्छेद 344 के खंड (4) के उपबंधों के अनुसार नियुक्त की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष 8 फरवरी, 1959 को पेश कर दी। नीचे रिपोर्ट की कुछ मुख्य बातें दी जा रही हैं जिनसे समिति के सामान्य दृष्टिकोण का परिचय मिल सकता है :- (क) | राजभाषा के बारे में संविधान में बड़ी समन्वित योजना दी हुई है। इसमें योजना के दायरे से बाहर जाए बिना स्थिति के अनुसार परिवर्तन करने की गुंजाइश है। | (ख) | विभिन्न प्रादेशिक भाषाएं राज्यों में शिक्षा और सरकारी काम-काज के माध्यम के रूप में तेजी से अंग्रेजी का स्थान ले रही हैं। यह स्वाभाविक ही है कि प्रादेशिक भाषाएं अपना उचित स्थान प्राप्त करें। अतः व्यवहारिक दृष्टि से यह बात आवश्यक हो गई है कि संघ के प्रयोजनों के लिए कोई एक भारतीय भाषा काम में लाई जाए। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह परिवर्तन किसी नियत तारीख को ही हो। यह परिवर्तन धीरे-धीरे इस प्रकार किया जाना चाहिए कि कोई गड़बड़ी न हो और कम से कम असुविधा हो। | (ग) | 1965 तक अंग्रेजी मुख्य राजभाषा और हिन्दी सहायक राजभाषा रहनी चाहिए। 1965 के उपरान्त जब हिन्दी संघ की मुख्य राजभाषा हो जाएगी अंग्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में ही चलती रहनी चाहिए। | (घ) | संघ के प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर कोई रोक इस समय नहीं लगाई जानी चाहिए और अनुच्छेद 343 के खंड (3) के अनुसार इस बात की व्यवस्था की जानी चाहिए कि 1965 के उपरान्त भी अंग्रेजी का प्रयोग इन प्रयोजनों के लिए, जिन्हें संसद् विधि द्वारा उल्लिखित करे तब तक होता रहे जब तक वैसा करना आवश्यक रहे। | (ड.) | अनुच्छेद 351 का यह उपबन्ध कि हिन्दी का विकास ऐसे किया जाए कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके, अत्यन्त महत्वपूर्ण है और इस बात के लिए पूरा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि सरल और सुबोध शब्द काम में लाए जाएं। रिपोर्ट की प्रतियां संसद के दोनों सदनों के पटल पर 1959 के अप्रैल मास में रख दी गई थीं और रिपोर्ट पर विचार-विमर्श लोक सभा में 2 सितम्बर से 4 सितम्बर, 1959तक और राज्य सभा में 8 और 9 सितम्बर, 1959 को हुआ था। लोक सभा में इस पर विचार-विमर्श के समय प्रधानमंत्री ने 4 सितम्बर, 1959 को एक भाषण दिया था। राजभाषा के प्रश्न पर सरकार का जो दृष्टिकोण है उसे उन्होंने अपने इस भाषण में मोटे तौर पर व्यक्त कर दिया था। |
2. अनुच्छेद344के खंड(6)द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने समिति की रिपोर्ट पर विचार किया है और राजभाषा आयोग की सिफारिशों पर समिति द्वारा अभिव्यक्त राय को ध्यान में रखकर, इसके बाद निम्नलिखित निदेश जारी किए हैं। 3. शब्दावली- आयोग की जिन मुख्य सिफारिशों को समिति ने मान लिया वे ये हैं- (क) | शब्दावली तैयार करने में मुख्य लक्ष्य उसकी स्पष्टता, यथार्थता और सरलता होनी चाहिए; | (ख) | अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली अपनाई जाए, या जहां भी आवश्यक हो, अनुकूलन कर लिया जाए; | (ग) | सब भारतीय भाषाओं के लिए शब्दावली का विकास करते समय लक्ष्य यह होना चाहिए कि उसमें जहां तक हो सके अधिकतम एकरूपता हो; और | (घ) | हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली के विकास के लिए जो प्रयत्न केन्द्र और राज्यों में हो रहे हैं उनमें समन्वय स्थापित करने के लिए समुचित प्रबन्ध किए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त समिति का यह मत है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सब भारतीय भाषाओं में जहां तक हो सके एकरूपता होनी चाहिए और शब्दावली लगभग अंग्रेजी या अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली जैसी होनी चाहिए। इस दृष्टि से समिति ने यह सुझाव दिया है कि वे इस क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं द्वारा किए गए काम में समन्वय स्थापित करने और उसकी देखरेख के लिए और सब भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने की दृष्टि से एक प्रामाणिक शब्दकोश निकालने के लिए ऐसा स्थाई आयोग कायम किया जाए जिसके सदस्य मुख्यतः वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीविद् हों। |
शिक्षा मंत्रालय निम्नलिखित विषय में कार्रवाई करें-- (क) | अब तक किए गए काम पर पुनर्विचार और समिति द्वारा स्वीकृत सामान्य सिद्धान्तों के अनुकूल शब्दावली का विकास / विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वे शब्द, जिनका प्रयोग अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में होता है, कम से कम परिवर्तन के साथ अपना लिए जाएं, अर्थात मूल शब्द वे होने चाहिए जो कि आजकल अन्तर्राष्ट्रीय शब्दावली में काम आते हैं। उनसे ब्युत्पन्न शब्दों का जहां भी आवश्यक हो भारतीयकरण किया जा सकता हैः | (ख) | शब्दावली तैयार करने के काम में समन्वय स्थापित करने के लिए प्रबन्ध करने के विषय में सुझाव देना, और | (ग) | विज्ञान और तकनीकी शब्दावली के विकास के लिए समिति के सुझाव के अनुसार स्थाई आयोग का निर्माण। |
4. प्रशासनिक संहिताओं और अन्य कार्य-विधि साहित्य का अनुवाद-- इस आवश्यकता को दृष्टि में रखकर कि संहिताओं और अन्य कार्यविधि साहित्य के अनुवाद में प्रयुक्त भाषा में किसी हद तक एकरूपता होनी चाहिए, समिति ने आयोग की यह सिफारिश मान ली है कि सारा काम एक अभिकरण को सौंप दिया जाए। | शिक्षा मंत्रालय सांविधिक नियमों, विनियम और आदेशों के अलावा बाकी सब संहिताओं और अन्य कार्यविधि साहित्य का अनुवाद करे। सांविधिक नियमों, विनियमों और आदेशों का अनुवाद संविधियों के अनुवाद के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है, इसलिए यह काम विधि मंत्रालय करे। इस बात का पूरा प्रयत्न होना चाहिए कि सब भारतीय भाषाओं में इन अनुवादों को शब्दावली में जहां तक हो सके एकरूपता रखी जाए। |
5. प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग को हिन्दी का प्रशिक्षण-- (क) | समिति द्वारा अभिव्यक्त मत के अनुसार 45 वर्ष से कम आयु वाले सब केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए सेवा कालीन हिन्दी प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। तृतीय श्रेणी के ग्रेड से नीचे के कर्मचारियों और औद्योगिक संस्थाएं और कार्य प्रभारित कर्मचारियों के संबंध में यह बात लागू न होगी। इस योजना के अन्तर्गत नियत तारीख तक विहित योग्यता प्राप्त कर सकने के लिए कर्मचारी को कोई दंड नहीं किया जाना चाहिए। हिन्दी भाषा की पढ़ाई के लिए सुविधाएं प्रशिक्षार्थियों को मुफ्त मिलती रहनी चाहिए। | (ख) | गृह मंत्रालय उन टाइपकारों और आशुलिपिकों का हिन्दी टाइपराइटिंग और आशुलिपि प्रशिक्षण देने के लिए आवश्यक प्रबन्ध करे जो केन्द्रीय सरकार की नौकरी में हैं। | (ग) | शिक्षा मंत्रालय हिन्दी टाइपराइटरों के मानक की-बोर्ड (कुंजीपटल) के विकास के लिए शीघ्र कदम उठाए। |
6. हिन्दी प्रचार-- (क) | आयोग की इस सिफारिश से कि यह काम करने की जिम्मेदारी अब सरकार उठाए, समिति सहमत हो गई है। जिन क्षेत्रों में प्रभावी रूप से काम करने वाली गैर सरकारी संस्थाएं पहले से ही विद्यमान हैं उनमें उन संस्थाओं को वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता दी जाए और जहां ऐसी संस्थाएं नहीं हैं वहां सरकार आवश्यक संगठन कायम करे। शिक्षा मंत्रालय इस बात की समीक्षा करे कि हिन्दी प्रचार के लिए जो वर्तमान व्यवस्था है वह कैसी चल रही है। साथ ही वह समिति द्वारा सुझाई गई दिशाओं में आगे कार्रवाई करे। | (ख) | शिक्षा मंत्रालय और वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय परस्पर मिलकर भारतीय भाषा, विज्ञान भाषा-शास्त्र और साहित्य सम्बन्धी अध्ययन और अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के लिए समिति द्वारा सुझाए गए तरीके से आवश्यक कार्रवाई करें और विभिन्न भारतीय भाषाओं को परस्पर निकट लाने के लिए अनुच्छेद 351 में दिए गए निदेश के अनुसार हिन्दी का विकास करने के लिए आवश्यक योजना तैयार करें। |
7. केन्द्रीय सरकारी विभाग के स्थानीय कार्यालयों के लिए भर्ती- (क) | समिति की राय है कि केन्द्रीय सरकारी विभागों के स्थानीय कार्यालय अपने आन्तरिक कामकाज के लिए हिन्दी का प्रयोग करें और जनता के साथ पत्र-व्यवहार में उन प्रदेशों की प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करें। अपने स्थानीय कार्यालयों में अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी का उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने के वास्ते योजना तैयार करने में केन्द्रीय सरकारी विभाग इस आवश्यकता को ध्यान में रखें कि यथासंभव अधिक से अधिक मात्रा में प्रादेशिक भाषाओं में फार्म और विभागीय साहित्य उपलब्ध करा कर वहां की जनता को पूरी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। | (ख) | समिति की राय है कि केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक अभिकरणों और विभागों में कर्मचारियों की वर्तमान व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाए, कर्मचारियों का प्रादेशिक आधार पर विकेन्द्रीकरण कर दिया जाए, इसके लिए भर्ती के तरीकों और अर्हताओं में उपयुक्त संशोधन करना होगा। स्थानीय कार्यालयों में जिन कोटियों के पदों पर कार्य करने वालों की बदली मामूली तौर पर प्रदेश के बाहर नहीं होती उन कोटियों के सम्बन्ध में यह सुझाव, कोई अधिवास सम्बन्धी प्रतिबन्ध लगाए बिना, सिद्धान्ततः मान लिया जाना चाहिए। | (ग) | समिति आयोग की इस सिफारिश से सहमत है कि केन्द्रीय सरकार के लिए यह विहित कर देना न्यायसम्मत होगा कि उसकी नौकरियों में लगने के लिए अर्हता यह भी होगी कि उम्मीदवार को हिन्दी भाषा का सम्यक ज्ञान हो। पर ऐसा तभी किया जाना चाहिए जबकि इसके लिए काफी पहले से ही सूचना दे दी गई हो और भाषा-योग्यता का विहित स्तर मामूली हो और इस बारे में जो भी कमी हो उसे सेवाकालीन प्रशिक्षण द्वारा पूरा किया जा सकता है। यह सिफारिश अभी हिन्दी भाषी क्षेत्रों के केन्द्रीय सरकारी विभागों में ही कार्यान्वित की जाए, हिन्दीतर भाषा-भाषी क्षेत्रों के स्थानीय कार्यालयों में नहीं। |
(क), (ख)और (ग) में दिए गए निदेश भारतीय लेखा-परीक्षा और लेखा विभाग के अधीन कार्यालयों के सम्बन्ध में लागू न होंगे। 8. प्रशिक्षण संस्थान-- (क) समिति ने यह सुझाव दिया है कि नेशनल डिफेंस एकेडमी जैसे प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही बना रहे किन्तु शिक्षा सम्बन्धी कुछ या सभी प्रयोजनों के लिए माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। रक्षा मंत्रालय अनुदेश पुस्तिकाओं इत्यादि के हिन्दी प्रकाशन आदि के रूप में समुचित प्रारम्भिक कार्रवाई करें, ताकि जहां भी व्यवहार्य हो शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग सम्भव हो जाए। (ख) समिति ने सुझाव दिया कि प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए, अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही परीक्षा के माध्यम हों, किन्तु परिक्षार्थियों का यह विकल्प रहे कि वे सब या कुछ परीक्षा पत्रों के लिए उनमें से किसी एक भाषा को चुन लें और एक विशेष समिति यह जांच करने के लिए नियुक्त की जाए कि नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग परीक्षा के माध्यम के रूप में कहां तक शुरू किया जा सकता है। रक्षा मंत्रालय को चाहिए कि वह प्रवेश परीक्षाओं में वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे और कोई नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना परीक्षा के माध्यम के रूप में प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग आरम्भ करने के प्रश्न पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करे। 9. अखिल भारतीय सेवाओं और उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं में भर्ती (क) परीक्षा का माध्यम- समिति कि राय है कि क | परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना रहे और कुछ समय पश्चात् हिन्दी वैकल्पिक माध्यम के रूप में अपना ली जाए। उसके बाद जब तक आवश्यक हो अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही परीक्षार्थी के विकल्पानुसार परीक्षा के माध्यम के रूप में अपनाने की छूट हो; और | ख | किसी प्रकार की नियत कोटा प्रणाली अपनाए बिना परीक्षा के माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की जाए। | | कुछ समय के पश्चात वैकल्पिक माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग शुरू करने के लिए संघ लोक सेवा आयोग के साथ परामर्श कर गृह मंत्रालय आवश्यक कार्रवाई करे। वैकल्पिक माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग करने से गम्भीर कठिनाइयां पैदा होने की संभावना है, इसलिए वैकल्पिक माध्यम के रूप में विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग शुरू करने की व्यवहार्यता की जांच करने के लिए विशेषज्ञ समिति नियुक्त करना आवश्यक नहीं है। |
(ख) भाषा विषयक प्रश्न-पत्र- समिति की राय है कि सम्यक सूचना के बाद समान स्तर के दो अनिवार्य प्रश्न-पत्र होने चाहिए जिनमें से एक हिन्दी और दूसरा हिन्दी से भिन्न किसी भारतीय भाषा का होना चाहिए और परीक्षार्थी को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह इनमें से किसी एक को चुन ले। अभी केवल एक ऐच्छिक हिन्दी परीक्षा पत्र शुरू किया जाए। प्रतियोगिता के फल पर चुने गए जो परीक्षार्थी इस परीक्षा पत्र में उत्तीर्ण हो गए हों, उन्हें भर्ती के बाद जो विभागीय हिन्दी परीक्षा देनी होती है उसमें बैठने और उसमें उत्तीर्ण होने की शर्त से छूट दी जाए। 10. अंक- जैसा कि समिति का सुझाव है केन्द्रीय मंत्रालयों का हिन्दी प्रकाशनों में अन्तर्राष्ट्रीय अंकों के अतिरिक्त देवनागरी अंकों के प्रयोग के सम्बन्ध में एक आधारभूत नीति अपनाई जाए,जिसका निर्धारण इस आधार पर किया जाए कि वे प्रकाशन किस प्रकार की जनता के लिए हैं और उसकी विषयवस्तु क्या है। वैज्ञानिक, औद्योगिक और सांख्यिकीय प्रकाशनों में,जिसमें केन्द्रीय सरकार का बजट सम्बन्धी साहित्य भी शामिल है, बराबर अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग किया जाए। 11. अधिनियमों,विधेयकों इत्यादि की भाषा-- (क) समिति ने राय दी है कि संसदीय विधियां अंग्रेजी में बनती रहें किन्तु उनका प्रमाणिक हिन्दी अनुवाद उपलब्ध कराया जाए। संसदीय विधियां अंग्रेजी में तो रहें पर उसके प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद की व्यवस्था करने के वास्ते विधि मंत्रालय आवश्यक विधेयक उचित समय पर पेश करे। संसदीय विधियों का प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद कराने का प्रबन्ध भी विधि मंत्रालय करे। (ख) समिति ने राय जाहिर की है जहां कहीं राज्य विधान मण्डल में पेश किए गए विधेयकों या पास किए गए अधिनियमों का मूल पाठ हिन्दी में से भिन्न किसी भाषा में है, वहां अनुच्छेद 348 के खण्ड (3) के अनुसार अंग्रेजी अनुवाद के अलावा उसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित किया जाए। राज्य की राजभाषा में पाठ के साथ-साथ राज्य विधेयकों, अधिनियमों और अन्य सांविधिक लिखतों के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन के लिए आवश्यक विधेयक उचित समय पर पेश किया जाए। 12. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की भाषा- राजभाषा आयोग ने सिफारिश की थी कि जहां तक उच्चतम न्यायालय की भाषा का सवाल है उसकी भाषा इस परिवर्तन का समय आने पर अन्ततः हिन्दी होनी चाहिए। समिति ने यह सिफारिश मान ली है। आयोग ने उच्च न्यायालयों की भाषा के विषय में प्रादेशिक भाषाओं और हिन्दी के पक्ष-विपक्ष में विचार किया और सिफारिश की कि जब भी इस परिवर्तन का समय आए, उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आज्ञप्त्िायों (डिक्रियों) और आदेशों की भाषा जब प्रदेशों में हिन्दी होनी चाहिए किन्तु समिति की राय है कि राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से आवश्यक विधेयक पेश करके यह व्यवस्था करने की गुंजाइश रहे कि उच्च न्यायालयों के निर्णयों, आज्ञप्तियों (डिक्रियों) और आदेशों के लिए उच्च न्यायालय में हिन्दी और राज्यों की राजभाषाएं विकल्पतः प्रयोग में लाई जा सकेंगी। समिति की राय है कि उच्चतम न्यायालय अन्ततः अपना सब काम हिन्दी में करे, यह सिद्धान्त रूप में स्वीकार्य है और इसके संबंध में समुचित कार्यवाही उसी समय अपेक्षित होगी जब कि इस परिवर्तन के लिए समय आ जाएगा। जैसा कि आयोग की सिफारिश की तरमीम करते हुए समिति ने सुझाव दिया है, उच्च न्यायालयों की भाषा के विषय में यह व्यवस्था करने के लिए आवश्यक विधेयक विधि मंत्रालय उचित समय पर राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से पेश करे कि निर्णयों, डिक्रियों और आदेशों के प्रयोजनों के लिए हिन्दी और राज्यों की राजभाषाओं का प्रयोग विकल्पतः किया जा सकेगा। 13. विधि क्षेत्र में हिन्दी में काम करने के लिए आवश्यक आरम्भिक कदम- मानक विधि शब्दकोश तैयार करने, केन्द्र तथा राज्य के विधान निर्माण से संबंधित सांविधिक ग्रन्थ का अधिनियम करने, विधि शब्दावली तैयार करने की योजना बनाने और जिस संक्रमण काल में सांविधिक ग्रंथ और साथ ही निर्णयविधि अंशतः हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे, उस अवधि में प्रारम्भिक कदम उठाने के बारे में आयोग ने जो सिफारिश की थी उन्हें समिति ने मान लिया है। साथ ही समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि संविधियों के अनुवाद और विधि शब्दावली तथा कोशों से संबंधित सम्पूर्ण कार्यक्रम की समुचित योजना बनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए भारत की विभिन्न राष्ट्रभाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञों का एक स्थाई आयोग या इस प्रकार कोई उच्च स्तरीय निकाय बनाया जाए। समिति ने यह राय भी जाहिर की है कि राज्य सरकारों को परामर्श दिया जाए कि वे भी केन्द्रीय सरकार से राय लेकर इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें। समिति के सुझाव को दृष्टि में रखकर विधि मंत्रालय यथासंभव सब भारतीय भाषाओं में प्रयोग के लिए सर्वमान्य विधि शब्दावली की तैयारी और संविधियों के हिन्दी में अनुवाद संबंधी पूरे काम के लिए समुचित योजना बनाने और पूरा करने के लिए विधि विशेषज्ञों के एक स्थाई आयोग का निर्माण करे। 14. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए योजना का कार्यक्रम-- समिति ने यह सुझाव दिया है कि संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की योजना संघ सरकार बनाए और कार्यान्वित करे। संघ के राजकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर इस समय कोई रोक न लगाई जाए। तद्नुसार गृह मंत्रालय एक योजना कार्यक्रम तैयार करे और उसे अमल में लाने के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करे। इस योजना का उद्देश्य होगा संघीय प्रशासन में बिना कठिनाई के हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए प्रारम्भिक कदम उठाना और संविधान के अनुच्छेद 343 खंड (2) में किए गए उपबन्ध के अनुसार संघ के विभिन्न कार्यों में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना, अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी का प्रयोग कहां तक किया जा सकता है यह बात इन प्रारम्भिक कार्रवाईयों की सफलता पर बहुत कुछ निर्भर करेगी। इस बीच प्राप्त अनुभव के आधार पर अंग्रेजी के अतिरिक्त हिन्दी के वास्तविक प्रयोग की योजना पर समय-समय पर पुनर्विचार और उसमें हेर-फेर करना होगा। |
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संघ की राजभाषा नीति संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है ।संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतराष्ट्रीय रूप है {संविधानका अनुच्छेद 343 (1)} । परन्तु हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है (राजभाषा अधिनियमकी धारा 3) । संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु राज्यसभा के सभापति महोदय या लोकसभा के अध्यक्ष महोदय विशेष परिस्थिति में सदन के किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं ।{संविधान का अनुच्छेद 120} किन प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाना है, किन के लिए हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का प्रयोग आवश्यक है और किन कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाना है, यहराजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 1976और उनके अंतर्गत समय समय पर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए निदेशों द्वारा निर्धारित किया गया है।
राजभाषा.. मेरी भाषा.. सबकी भाषा Acceptanceisawaited | स्वीकृति की प्रतिक्षा है | Accordapprovalto----- | कृपया ----- को अनुमोदित करें | ActinginOfficialCapacity | पद की हैसियत से कार्य करते हुए | Actionisrequiredtobetakenearly | शीघ्र कार्रवाई अपेक्षित है | Actionmaybetakenaccordingly | तदनुसार कार्रवाई की जाए | Addressallconcerned | सर्वसंबंधित को लिखा जाए | Administrativeapprovalmaybeobtained | प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त किया जाए | Adviseaccordingly | तदनुसार सलाह दें | Afteradequateconsideration | समुचित विचार के बाद | Afterperusal | देख लेने के बाद, अवलोकन के बाद | Approvedasproposed | यथा प्रस्ताव अनुमोदित | Asamatteroffact | यथार्थतः, वस्तुतः | Asamended | यथासंशोधित | Asanexceptionalcase | अपवाद के रूप में | Asdesiredinyourletterquotedabove | जैसा उपर्युक्त पत्र में कहा गया है | Asinforceforthetimebeing | जैसा कि फिलहाल लागू है | Asperextentorders | वर्तमान आदेशों के अनुसार | Asperinstruction | आदेशानुसार | Asperopinionof | के मतानुसार | Asrecommended | यथा संस्तुत, सिफारिश के अनुसार | Asrequiredundertherules | जैसा कि नियमों के अधीन अपेक्षित है/हो | Thecasemaybe | यथास्थिति, जैसी स्थिति हो, यथा प्रकरण | Byvirtueofoffice | पद के नाते, पद की हैसीयत से | Consolidatedreportmaybefurnished | समेकित रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए | Copyenclosedforreadyreference | तत्काल संदर्भ के लिए प्रतिलिपि संलग्न | Damageanddeficiencyreport | क्षति और कमी की रिपोर्ट | Daytodayadministrativework | दैनंदिन प्रशासनिक कार्य, नित्य का प्रशासनिक कार्य | Delayregretted | विलंब के लिए खेद है | Delayshouldbeavoided | विलंब न होने दे, देर नहीं होनी चाहिए | Departmentalactionisinprogress | विभागीय कार्रवाई की जा रही है | Draftreplyisputupforapproval | उत्तर का प्रारूप अनुमोदन के लिए प्रस्तुत है |
Earliestpossible | यथाशीघ्र | Encroachment | अधिक्रमण,अतिक्रमण | Efficiency | दक्षता, कार्यकुशलता | EfficiencyBonus | दक्षता बोनस | Efficiencyrating | दक्षता कोटि निर्धारण | Efficient | दक्ष, दक्षतापूर्ण | Ejectment | बेदखली | Ensure | सुनिश्चित करना | Elementary | प्रारंभिक | Eligible | पात्र | Embarrassment | उलझन | Enclosure | अनुलग्नक | Empowerment | सशक्तीकरण | Endorsement | पृष्ठांकन, समर्थन | Energy | ऊर्जा | Enforcement | प्रवर्तन | Etiquette | शिष्टाचार | FacultyofEngineering | इंजीनियरी संकाय | Fairness | निष्पक्षता, औचित्य | Fakecurrency | जाली मुद्रा, जाली नोट | Faultfinding | छिद्रान्वेषण, दोष निकालना | Filemovementregister | फाइल संचलन रजिस्टर | Finalcontribution | अंतिम अंशदान | Floatingcapital | चल पूंजी | Floatingdebt | चल ऋण | Floatingliability | चल देयता | Forfeited | जब्त | Generalprincipleandrules | सामान्य सिद्धांत और नियम | GeneralOrder | सामान्य आदेश | Genuinetext | प्रामाणिक पाठ | Goodsshed | माल शेड | Goodstrain | मालगाड़ी | Governingbody | शासी निकाय |
राजभाषा.. मेरी भाषा.. सबकी भाषा (गोपनीय रिपोर्ट के वाक्यांश) Academic | शैक्षणिक / अकादमिक | Accomplished | सिद्ध / प्रवीण / कुशल | Accuracy | परिशुद्धता / यथार्थ /सही | Achievements | उपलब्धियां | AdamantAttitude | अड़ियल रवैया | Admonish | भर्त्सना करना | Adventurous | साहसी | Adverse | प्रतिकूल | AllRounder | सर्वकार्य कुशल | Amenable | आज्ञाकारी | Appreciate | समझना, सराहना | Assumesresponsibilities | उत्तरदायित्व वहन करते है | Average | औसत, सामान्य | Adverse | प्रतिकूल | Behaviour | व्यवहार / गतिविधि | Beyonddoubt | संदेह से परे / असंदिग्ध | Borneinmind | ध्यान में रखना | Brilliant | सक्षमता, प्रतिभाशाली | Concentrate | केंद्रित होना या करना | Confident | विश्वास / भरोसा | Confine | सीमित रखना | Commitment | वचनबद्धता / जुड़ाव | Competent | समर्थ, सक्षम, निपुण सुयोग्य | Dedication | समर्पणभाव | Diligent | मेहनती, परिश्रमी, उद्यमी,अध्यवसायी | Energetic | कर्मशील, स्फूर्तिवान, कर्मठ | Exemplary | अनुकरणीय, शिक्षात्मक,आदर्श स्वरूप | Facile | सरलस्वभाव, विनयशील, सौम्य, मृदु | Fitforpromotion | पदोन्नति के योग्य | Follow-up-action | अनुवर्ती कार्रवाई | Foresight | दूरदर्शिता | Goodcommandoverlanguage | भाषा पर अच्छा अधिकार | Impartial | निष्पक्ष | Immodest | अविनीत, धृष्ट | Industrious | परिश्रमी, अध्यवसायी, मेहनती | Initiative | पहल शक्ति, पहल, स्वतःप्रेरणा | Interpersonal | परस्पर | Intricate | जटिल, पेचीदा | Luminary | प्रकांड विद्वान | Methodical | रीति - परायण, पद्धतिशील | Motivation | उत्प्रेरण | Ordinary | साधारण, मामूली सामान्य | Potential | संभावनाएं, संभाव्य | Prompt | तत्पर, स्फूर्त, तुरंत कार्य करनेवाला | Punctual | समय का पाबंद | Qualitative | गुणात्मक | Reliable | विश्वसनीय, विश्वस्त | Reviewingofficer | पुनरीक्षण अधिकारी | Richlydeservespromotion | पूर्णतया पदोन्नति का पात्र है | Shortfalls | कमियां | Smart | फुर्तीला, चुस्त | Submissive | आज्ञाकारी, विनम्र | Tactful | व्यवहार कुशल, चतुर, पटु | Teamspirit | टीम भावना, समूह भावना | Veryefficient | अत्यंत कार्यकुशल | Welldisciplined | सु-अनुशासित | Wellread | बहुपठित, अध्ययन अच्छा है | Willing | प्रस्तुत, तत्पर, इच्छुक | Willingness | इच्छा शक्ति | Willingsupport | स्वतःस्फूर्त समर्थन | Zealworkwith | उत्साह से काम करते है |
Source : पश्चिम रेलवे CMS Team Last Reviewed : 09-09-2022
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